खुराकीवाला ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपए की मजबूती तथा ब्याज की ऊंची दर के कारण छोटे और मझोले उपक्रमों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है।
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इसके बावजूद, अब इस पारंपरिक ज्ञान का कोई औचित्य नहीं रह गया है, क्योंकि माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की ओर से 28 से लेकर 30 प्रतिशत ब्याज की ऊंची दर पर कर्ज लेने के बावजूद ग्रामीण परिवार अपना कर्ज चुका पाने में सक्षम हैं.